बुंदेलखंड में विभिन्न त्यौहार परम्परागत तरीके से मनाये जाते हैं साथ ही कार्तिक महीने में स्नान का अलग ही महत्व होता है।कार्तिक मास में कार्तिक स्नान एक पर्व विशेष के रूप में मनाया जाता है। इसी परंपरा को लेकर जैतपुर विकासखंड क्षेत्र की युवतियां, महिलाएं समीप की नदी, तालाब पर ब्रम्ह मुहुर्त में स्नान हेतु जाती है तथा अपने सुरीले कंठों से कार्तिक गीत जो कि कृष्णलीला से संबंधित होते है, गाती जाती है। कार्तिक के गीत हृदयस्पर्शी होते है। गीतों का यह क्रम पूरे महीने चलता है। कृष्ण में अटूट श्रद्धा इस समय देखने को मिलती है, गावों में स्नान करने वाली महिलाओं को कतकयारी कहा जाता है, इनकी स्नान पूजन की अपनी अलग विधियां होती है।
पौराणिक कथा जिसमें कृष्ण को पति के रूप में प्राप्ति हेतु बृज की गोपियों ने कार्तिक व्रृत अनुष्ठान किया था जो इस पर्व का आधार है, लेकिन वर्तमान में यह वृत मनोकामना, सुख-समृद्धि, बैकुण्ठ प्राप्ति आदि के लिये किया जाता है। कृष्ण महिमा, कृष्ण लीला सम्बन्धी यह वृत बुन्देली संस्कृति का प्रतिबिम्ब है। इस पर्व के समस्त गीत कृष्ण लीला, चीरहरण, रास लीला, तुलसी पूजन आदि से संबंधित है। स्नान के पहले दिन औरतें जवा तिल को एक सफेद कपड़े में बांधकर छोटी सी पोटली जिसे गांठ कहते है, पंडित के पास ले जाती है पंडित से गांठ का पूजन करवाया जाता है।बिना इसके वृत अधूरा है। यह गांठ रोज अपने साथ स्नान के समय ले जाती है, और पानी में उसे डुबोती है। फिर एक तरफ रख देती है फिर स्वयं स्नान करके गांठ का पूजन करके वहां से गाती हुई चलती है। स्नान के साथ लाने वाली गांठ के साथ में एक समस्या जुड़ी होती है कि यदि वह तिल या जवा अंकुरित हो गये तथा कतकयारी ने वृत लगन से नहीं किया उसमें कोई खोट रही होगी, इससे प्रत्येक महिला उसे बड़ी सतर्कता से रखती है। वहीं से लौटकर सब स्त्रियां मंदिर में या फिर किसी ऐसे घर में जहां तुलसी का पौधे के साथ कृष्ण शालिगराम मूर्ति की पूजन कर दीपदान करती है।
दीपदान के लिये आटे का दिया जलाकर एक मुट्ठी अनाज लेकर उसे जला दीपक रख कृष्ण की, तुलसी की आरती उतारती है, फिर वह दीपक एवं अनाज पंडित को दानकर दिया जाता है, उसे ही दीपदान कहते है। तुलसी की परिक्रमा करती है। कार्तिक स्नान में जलाशय पर या नदी में स्त्रियां जाती है। क्षेत्र के सुप्रसिद्ध मठ धौंसा मंदिर में पूरे कार्तिक मास हजारों की संख्या में इन महिलाओं की सुबह होते ही भीड़ लग जाती, जहां मेला के स्वरूप में गोपिकाओ की पूजा अर्चना देखते ही बनती। आज के दिन गोपियां अपने ठाकुर जी को खोजने जाती है, जहां पर जैतपुर निवासी संजय पटेरिया और कतकयारी के बीच सुरीले बन्देली गीतों का जवाबी कार्यक्रम संपन्न हुआ… बुंदेलखंड को पारम्परिक कातक(कार्तिक)स्नान लोकगीत
आ जैहो बड़े भोर दही लै के, आ जैहो बड़े भोर।।
नें मानो कुड़री धर राखो, मुतियन लागी कोर।
नें मानो मटकी धर राखो, सबरे बिरज कौ मोल।
नें मानो चुनरी धर राखो, लिख है पपीहरा मोर।
नें मानो गहने धर राखो, बाजूबंद कडडोर।
बुंदेलखंड में पूरे मास कड़ाके की ठंड में ब्रम्हमुहूर्त में तालाब, पोखर पर जाकर कतकयारी करती हैं स्नान

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